युगांतर
युगांतर
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सदियों के आँगन
में कुछ हमने भी
रोपा होगा
सूरज को क़ैद
किया होगा
या चंदा से बैर
किया होगा।
नीलांचल से जब
बिजली कौंधी होगी
बादल फ़टे होंगे या
बूँदों ने देह त्यागी होगी
हुआ बहुत होगा तब भी
पर आंखें थी तब प्रस्तर
होती यदि सजग आँख तो
क्यों ओढ़ता अतीत चादर
परिहार, परिवाद, प्रश्न चिन्ह सा
हर युग के यक्ष अनोखे हैं
पाप पुण्य के महासमर में
टूटे सपने, भरोसे हैं
दृषि दृष्टि में अंतर होता
बदलते काल, कोण सभी
जिन हाथों में युग सजा हो
वो अतीत के खण्ड कहीं।
संदर्भ शेष के पृष्ठों पर
कुछ भूलें तो तुमसे भी
पूछ रही हैं ओ निर्भीक!
क्या सजा तुम दोगे उनको
जिनके कारण काल निर्जीव।
सब बाँधे आँखों पर पट्टी
कौन कहे और क्यों कहे
राम कृष्ण अवतारी युग में
पाप कटे या पुण्य बहे..??
सूर्यकांत