Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Oct 2022 · 4 min read

*युगपुरुष महाराजा अग्रसेन*

युगपुरुष महाराजा अग्रसेन
____________________________________
महाराजा अग्रसेन का जन्म आज से लगभग 5000 वर्ष पहले हुआ था । आप अग्रोहा के महान शासक थे। आपका राज्य सही मायनों में एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता था । समृद्धशाली अग्रोहा राज्य की स्थापना आपने ही की तथा अपनी दूरदर्शिता और सेवा भावना से अग्रोहा को विश्व के महान राज्यों की प्रथम पंक्ति में खड़ा कर दिया ।
आपके राज्य में न कोई दुखी था, न कोई निर्बल । सब समृद्ध तथा शक्तिशाली थे । एक दूसरे की सहायता करते थे । सब में बंधुत्व भाव था , अहिंसा कूट-कूट कर भरी थी , पशु हिंसा आपके राज्य में निषिद्ध थी। कम शब्दों में कहें तो स्वर्ग को आपने धरती पर उतार दिया था । यह चमत्कार कैसे हुआ ? आज भी समाजशास्त्री अग्रोहा की शासन व्यवस्था का अध्ययन करते हैं तो उन्हें यह देखकर दंग रह जाना पड़ता है कि अग्रोहा में निर्धनता का नाम – निशान नहीं था । इसका मूल कारण एक ईंट एक रुपए की परिपाटी थी ,जो महाराजा अग्रसेन ने आरंभ की तथा उनके पुत्र महाराज विभु ने भी उस परंपरा को और भी समृद्ध किया । यह परिपाटी किसी भी गरीब व्यक्ति को उसका घर बना कर देने तथा काम धंधा करने के लिए एक लाख रुपए की पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने पर आधारित थी । अग्रोहा में समस्त जनता एक दूसरे के साथ भाई बहन की तरह रहती थी ऐसे में अपने बंधु – बंधुओं की सहायता करने में उनको असीम सुख मिलता था । यह बंधुत्व जो अग्रोहा के समाज में पैदा हुआ ,यह महाराजा अग्रसेन की मौलिक सोच का परिणाम था ।
आपने जन्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए अग्रोहा के जन-जन को 18 गोत्रों में इस प्रकार से बाँटा और आपस में एक सूत्र में जोड़ दिया कि वह सारे गोत्र अलग होते हुए भी हमेशा – हमेशा के लिए आपस में एकाकार हो गए । इसके लिए आपने जनता को 18 यज्ञ के माध्यम से नया गोत्र – नाम प्रदान किया। इतिहास में नया गोत्र – नाम प्रदान करना एक अद्भुत और अविस्मरणीय घटना थी। ऐसा न इससे पहले कभी हुआ और न उसके बाद कभी हुआ कि गोत्र ही नए रूप में प्रदान कर दिए जाएँ। यज्ञों के साथ ही 18 गोत्र आपस में इस प्रकार से जुड़ गए कि अब उन में कोई भेदभाव नहीं रहा । एक और पद्धति महाराजा अग्रसेन के समय से आरंभ हुई और वह यह थी कि एक गोत्र का विवाह उसी गोत्र में न होकर अनिवार्य रूप से बाकी 17 गोत्रों में से कहीं होगा । एक ही गोत्र में विवाह नहीं होता था । जिस तरह ताश के पत्तों को फेंट कर आपस में मिला दिया जाता है ,ठीक उसी प्रकार अब यह 18 गोत्र ऐसे मिल गए कि अब उनमें कोई फर्क बाकी न रहा । इस तरह अग्रवाल समाज एकता के सूत्र में पिरोया गया और इसने सामाजिक समरसता और एकता का पाठ सारे विश्व को पढ़ाया ।
मानो इतना ही पर्याप्त न हो ,इसलिए 18वाँ यज्ञ करते समय महाराजा अग्रसेन को जब यज्ञ में पशु बलि अर्थात घोड़े की बलि होते हुए देखने पर करुणा का भाव जागृत हुआ, पशु हिंसा से उन्हें ग्लानि होने लगी तथा जीव – दया का भाव उनकी चेतना पर छा गया, तब उन्होंने यज्ञ में पशु – हिंसा न करने का निश्चय किया। उस समय यह बहुत बड़ा कदम था । इसके लिए भारी विरोध महाराजा अग्रसेन को झेलना पड़ा । स्थिति यहाँ तक आई कि अट्ठारह यज्ञों को कतिपय लोगों ने यज्ञ मानने से ही इंकार कर दिया तथा इस प्रकार अग्रवालों के इतिहास में यह अठारह यज्ञ वास्तव में साढ़े सत्रह यज्ञों के रूप में जाने जाते हैं । अधूरा 18वाँ यज्ञ इस दृष्टि से बहुत पवित्र प्रेरणादायक तथा युग परिवर्तनकारी कहा जा सकता है कि इसने न केवल अग्रोहा बल्कि समूचे भारत में अहिंसा तथा शाकाहार और पशु -हत्या के संदर्भ में एक जबरदस्त चेतना पैदा कर दी। इसका परिणाम यह निकला कि चारों तरफ आर्थिक समानता ,शाकाहारी जीवन पद्धति और सामाजिक समरसता केवल सिद्धांत के रूप में नहीं अपितु व्यवहार रूप में धरातल पर उतर आई।
ऐसे महान समतावादी समाज के प्रणेता महाराजा अग्रसेन के पद चिन्हों पर चलते हुए वास्तव में उनके आदर्शों पर राष्ट्र का पुनर्निर्माण अग्रवाल समाज की भारी जिम्मेदारी है । आशा है ,महाराजा अग्रसेन के जीवन और कार्यों में निहित संदेश का ज्यादा से ज्यादा प्रसार होगा और उनके पद चिन्हों पर चलकर उसी आदर्श को हम फिर से स्थापित कर सकेंगे जो हजारों वर्ष पूर्व अग्रोहा में महाराजा अग्रसेन ने करके दिखाया था ।
आज भी अग्रवालों के 18 गोत्र हैं, लेकिन उन गोत्रों में आपस में कोई भेदभाव नहीं है । अग्रोहा से जिस बंधुत्व का पाठ पढ़कर वह सारे भारत में फैले ,आज भी उन्हीं आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात किए हुए हैं । इसका श्रेय महाराजा अग्रसेन को जाता है ।

प्रश्न यह है कि महाराजा अग्रसेन को उनके विराट व्यक्तित्व को देखते हुए अगर हम भगवान अग्रसेन कहें तो इसमें अनुचित क्या है ? वास्तव में देखा जाए तो भगवान कहना हमारी श्रद्धा का चरमोत्कर्ष है। इसका अर्थ है कि हमारा मानना है कि महाराजा अग्रसेन सर्वसाधारण मनुष्य-समाज की असाधारण शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका जीवन तथा कार्य दिव्यता से भरे थे। उनके जैसा हो पाना लगभग असंभव है। यद्यपि यह भी सत्य है कि हर मनुष्य के हृदय में एक समान ईश्वरीय तत्व निवास करता है। यह जो सब जीवों में समान दिव्य ज्योति की विद्यमानता है, उसका प्रकटीकरण अपनी सर्वोच्चता के साथ महाराजा अग्रसेन के रूप में हमने देखा। महाराजा अग्रसेन को भगवान कहते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि कहीं हमारी श्रद्धा और भक्ति किसी जादू-टोने अथवा चमत्कार के फेर में न पड़ जाए।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451

167 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करना भी एक विशेष कला है,जो आपक
लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करना भी एक विशेष कला है,जो आपक
Paras Nath Jha
सुंदर नाता
सुंदर नाता
Dr.Priya Soni Khare
नववर्ष
नववर्ष
Neeraj Agarwal
।।
।।
*प्रणय*
'प्यासा'कुंडलिया(Vijay Kumar Pandey' pyasa'
'प्यासा'कुंडलिया(Vijay Kumar Pandey' pyasa'
Vijay kumar Pandey
उम्मीद
उम्मीद
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
बेटियां अमृत की बूंद..........
बेटियां अमृत की बूंद..........
SATPAL CHAUHAN
अरे कुछ हो न हो पर मुझको कुछ तो बात लगती है
अरे कुछ हो न हो पर मुझको कुछ तो बात लगती है
सत्य कुमार प्रेमी
"मोहे रंग दे"
Ekta chitrangini
जिंदगी की राहों में, खुशियों की बारात हो,
जिंदगी की राहों में, खुशियों की बारात हो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
पूर्वार्थ
इनका एहसास
इनका एहसास
Dr fauzia Naseem shad
आए गए कई आए......
आए गए कई आए......
कवि दीपक बवेजा
कुदरत है बड़ी कारसाज
कुदरत है बड़ी कारसाज
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"अपेक्षा"
Dr. Kishan tandon kranti
वक्त बड़ा बेरहम होता है साहब अपने साथ इंसान से जूड़ी हर यादो
वक्त बड़ा बेरहम होता है साहब अपने साथ इंसान से जूड़ी हर यादो
Ranjeet kumar patre
जय मां शारदे
जय मां शारदे
Mukesh Kumar Sonkar
शिव स्तुति
शिव स्तुति
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
महिला दिवस
महिला दिवस
Surinder blackpen
3871.💐 *पूर्णिका* 💐
3871.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
ससुराल में साली का
ससुराल में साली का
Rituraj shivem verma
कुछ न जाता सन्त का,
कुछ न जाता सन्त का,
sushil sarna
अन्तर मन में उबल रही  है, हर गली गली की ज्वाला ,
अन्तर मन में उबल रही है, हर गली गली की ज्वाला ,
Neelofar Khan
रग रग में देशभक्ति
रग रग में देशभक्ति
भरत कुमार सोलंकी
कल जो रहते थे सड़क पर
कल जो रहते थे सड़क पर
Meera Thakur
Ignorance is the shield
Ignorance is the shield
Chitra Bisht
रंग जाओ
रंग जाओ
Raju Gajbhiye
फूल बेजुबान नहीं होते
फूल बेजुबान नहीं होते
VINOD CHAUHAN
दोहा
दोहा
गुमनाम 'बाबा'
काल भैरव की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है. कहा
काल भैरव की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है. कहा
Shashi kala vyas
Loading...