*या मरणशील तन 【भक्ति-गीत】*
या मरणशील तन 【गीत】
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मैं अमर आत्मा या मरणशील तन
(1)
देह मैं जानता हूँ न रहती सदा
साँस खुद ही को अनजान कहती सदा
रास्ते में बुढ़ापे की छाया बड़ी
और बीमारियाँ ढेर-सी हैं खड़ी
घोर दुख सिर्फ हर ओर दिखते सघन
(2)
मैं बसा हर तरफ बात क्या मान लूँ
विश्व-भर से मुलाकात क्या मान लूँ?
मैं ही हूँ क्या सभी में समाया हुआ
मैं ही हूँ क्या समझ में न आया हुआ
आज संशय में मैं डूबता ग्रस्त मन
(3)
जान पाया नहीं कुछ भी सच्चाइयाँ
मैं न अमरत्व की कुछ भी परछाइयाँ
लग रहा है कभी यह मैं फिर आऊँगा
लग रहा है कभी नष्ट हो जाऊँगा
न जाने मैं युग हूँ या हूँ एक क्षण
मैं अमर आत्मा या मरणशील तन
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451