यार ब – नाम – अय्यार
, यार ब- नाम अय्यार
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जब अपनापन हो जाता है ,
मुँह से यार निकल जाता है !
बड़े और छोटे का अंतर –
स्वत: सहज ही मिट जाता है!!
माँ की गोदी में शिशु खेले ,
सहज-सहज सब अंग टटोले !
मौन स्नेह बरसे मन ही मन –
हृदय सिक्त सा हो जाता है !!
मन-भायी निधि यदि मिल जाये,
ऐसा लगे कि कभी न जाये !
मन को लगे यही होना था –
भूत-अद्य-भव चुक जाता है !!
साथी साथ अगर सम हो तो,
बरसातें भी भिगो न पातीं !
गर्मी-सर्दी पास न आये –
जल्द सवेरा हो जाता है !!
निष्ठुर , नींच, निहंग सदा ही ,
चिंता नहीं किसी की करता !
लेकिन वही ,वही शैशव में –
माँ की गोदी सुख पाता है !!
यार शब्द अपभ्र॔श हो गया,
यार शब्द बद्नाम हो गया !
जो”अयार”था बहुत चतुर था-
वह अब यार कहा जाता है!!
अय्यारो॔ से यारी करना ,
बहुत शान समझी जाती थी !
लेकिन अब अय्यार यार का-
नाता गलत कहा जाता है !!
अब यारी का रूपांतर है ,
“क्लोज फ्रेंड”से वो अभिहित है!
युग बदले तो बदल जाय पर-
हर युग मित्र चुना जाता है !!
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मोलिक चिंतन/स्वरूप दिनकर
आशु कवि
05/11/2023
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