यार दो चार हैं
**** यार दो चार हैं (ग़ज़ल) ****
**** 212 212 212 212 ****
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यार दो चार हैं ताश ही चाहिए,
जाम तैयार है खास ही चाहिए।
साथ हो हमसफर तो गिला है नहीं,
दोस्त का हाथ तो पास ही चाहिए।
वो गुलाबी गुलाबों भरी सी दिखे,
बस महक से भरी पाश ही चाहिए।
भूल कर भी न है भूलता शौक वो,
कैद में भी उसे मांस ही चाहिए।
मन से सीरत रहा दास बनकर सदा
देख कर ढूंढ़ना दास ही चाहिए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)