“यारों से बचना”
कभी फूलों से ,कभी खारों से बचना ।
कभी दुश्मन से, कभी यारों से बचना ।।
ख़ुशी में बस, घर में जिनका आना जाना।
ऐसे अक्लमंद मीत, रिश्तेदारों से बचना।।
जिंदगी में धोखेबाज बहुत है अपने ही।
वफ़ा के नाम दे दगा, वफादारों से बचना।।
मिट्टी ले फूल कर देते है , मुट्ठी में।
समझ आए न , ऐसे चमत्कारों से बचना।।
हकीकत ये भी है, खुद कत्ल कर जाओ।
कत्ल की मंशा बने, ऐसे विचारों से बचना।।
गगन चूमे व्यापार तुम्हारा, बेशक “जय”।
खुद ही बिक जाओ,ऐसे व्यापारों से बचना ।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म. प्र.