यायावर
घर से दुर निकल आया तो में,
कुछ ख्वाब बस्ते में बांध लाया मैं!
चला तो था खुद की पहचान बनाने,
जाने क्या से क्या बन गया मैं !
खास-ओ-आम में भी नहीं चर्चा मेरा, मेरे माजी का हूँ बस साया मैं !
कुछ देर कही सांस ली फिर चला,
है रास्ते याद पर मंजिल भुलाया मैं !
लोग बहुत मिले पर साथी कोई नहीं,
अपनों के लिए हुॅं पराया में.!
हैं पता यह कि लापता हूँ मे,
जाने क्यो भर रहा हर माह किराया मैं.!
वो जालौर की शान्ति नगर की गलिया,
जहाँ रहता हूँ मैं……
रहता हूँ क्यो मैं वहाँ ,
क्या है सपना मेरा…..
वो शंकरी हुई गलियां.. जहाँ,
मेरा रेंट वाला मकान वहाँ..!
मैं रहता हूँ जो जहाँ ,
मै रहता हूँ वहाँ…!
✒️ अभिषेक बोस विशाला
सायला(जालौर)343032
मो. +918529243227