यामिनी बैरन हुईं है
छंद – गीतिका
समान्त ‘अना’ पदान्त मुझे
2122 2122 2122 212
यामिनी बैरन हुईं है आज फिर जगना मुझे।
आज फिर से दीप बन कर रात भर जलना मुझे।
सृष्टि सारी जल रही है आसमां भी रो रहा,
इस विरह की वेदना का दर्द फिर सहना मुझे।
घूँट आँसूं का हलाहल पी रही हूँ रात दिन,
जब किया है प्रेम तो अंगार पथ चलना मुझे।
प्राण चिंतित आज क्यों हो यह प्रणय की रीत है,
स्नेह का दो बूँद बन सिंचित हृदय करना मुझे।
टूट कर सौ खंड में भी ध्यान बस उनका रहा,
प्रेम का उन्माद इतना मुग्ध हो रहना मुझे।
यामिनी हो फिर मिलन की फिर प्रणय अभिसार हो,
रागिनी अपनी जगा लूँ फिर नहीं बुझना मुझे।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली