यामिनी (कविता)
काले आँचल पर ,
चमकते ज्यों सितारेे।
यामिनी ने ही सजाये हैं,
नभ पर चमकते तारेें।
घूँघट में अपने चाँद सा मुखड़ा कभी छुपाये ,
तो कभी दिखा जाये।
जैसे रूप से अपने वोह नव-यौवना ,
कभी बहकाए तो कभी तरसाएे।
और कभी यूँ लगे ,
घूँघट में छुपा प्रदीप्त चंदा ,
कोई दीपक सा।
जिसे गौरी अपने घूँघट में छुपाकर लिए जाये।
उसके हलके से उजाले में ,
चंचल ,चपला रवि तनया ,
आनंद से प्रफुल्लित होती जाये.
मग्न हो छेड़ती अपनी लहरों के सूर ताल।
संग -संग सारी प्रकृति ,
उसके आनंद व् प्रसन्नता में ,
मिला रहे है ताल में ताल।
शीतल चांदनी यामिनी के रूप की ,
छिटकी हुई है अवनि और अम्बर पर।
यूँ लगे जैसे स्वर्ग सा उतर आया हो
इस धरती पर ।