याद
खुली सी छत को देख कर सोचा किया तुझे,
भीगी सी लट को देख कर सोचा किया तुझे।
जिस वक्त चाँद तारे ,आसमां भी सो गए,
उस वक़्त तन्हा बैठ के सोचा किया तुझे।
दरिया भी आ के रुक गया ,सागर से मिल गले।
तकिया गले लगाकर सोचा किया तुझे।
इक बून्द पे आके ,सारा जहाँ सिमट गया।
उस वक़्त से आगे भी सोचा किया तुझे।
तेरी तड़प में मेरी भी कहीं आह छुपी हो।
ये सोच के बेवक़्त भी सोचा किया तुझे।
पत्ते भी हवा से मुह मोड़ चुके थे।
उन बन्द हवाओं में भी सोचा किया तुझे।
तेरी शिकायत आ के गले पे अटक गई।
न सोच के भी सिर्फ सोचा किया तुझे।
कुछ दिन बगैर साँस के भी जी लिए थे हम।
तेरे बगैर बेखबर सोचा किया तुझे।