याद
घाटियों पे-
घिर रहा,
गहरा अंधेरा।
मन मे उभरता,
आ रहा है-
नक्श तेरा।
जैसे आंसुओं के,
नन्हे नन्हे हंस-
तैरते से आ रहे है,
पलकों का पंछी-
कर रहा साया घनेरा।
स्मृति तट पर,
बिछ गई है-
के की फिसलन,
घिर रही है धुन द-
स्लेटी सा अंधेरा।
रंग बिरंगे चित्र,
सब जीवन्त हैं-
मन मुक्त है कि,
उठ गया बुद्धि का पहरा।।