याद है
तेरी साँसों का वो शोर याद है
बरसा था जो सावन घनघोर याद है
हाथ बढ़ा कर पकड़ती थीं बारिश की बूँदें जो
मोहब्बत का वो हसीन दौर याद है
झांकना खिड़की से बैठकर बाहों में
घटाओं से घिरा आसमान का वो छोर याद है
बारिशों में चलते रखलेना सर कंधे पर मेरे
साथ देखी थी जो हर भीगी भोर याद है
जाने चली गईं किस दुनिया में छोड़ कर अकेला रूहों पर ना चलता इंसान का जोर याद है
मिलना ही है हमें कब तक रहेंगे जुदा
कभी तो टूटेगी मेरी सांसो की ये डोर याद है
पर जहां भी हो देखो वहां से
आज भी तुमहारे सिवा मुझे ना कुछ और याद है