*याद है हमको हमारा जमाना*
याद है हमको हमारा जमाना
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याद है हमको हमारा जमाना,
आज भी हूँ मै उसका दीवाना।
नये पुराने गानों की रंगोली,
चंद्रकांता देखा बना कर टोली,
चित्रहार फिल्मी गीतों का ताना।
संडे के दिन बिल्कुल ना नहाना।
संडे – सैचर डे की प्यारी फ़िल्में,
जिनकी कहानी बसी है दिल में,
पहियों से टी.वी.अंटीना बनाना।
छत पर जा कर उसको घुमाना।
सचिन का जब आउट हो जाना,
देखने लायक था मुंह लटकाना,
बैटबॉल ले खेलने निकल जाना।
क्रिकेट खेल कर दिल बहलाना।
गुल्ली डंडा खेला खेल पुराना,
खाली गया ना लगाया निशाना,
साईकल आधी कैंची चलाना।
चैन में फंस् पजामा फट जाना।
माँ का प्रेम फुटे पापा का गुस्सा,
हर दिन का हमारा यही किस्सा,
भाई बहनों संग था भिड़ जाना।
रूठ जाने पर था माँ का मनाना।
करीबी बहुत बचपन के साथी,
झूठी-मूठी खेलते थे हम शादी,
रात को जैसे जब देर से आना।
आने का बनाना झूठा बहाना।
मन के थे सच्चे जब हम बच्चे,
दिल के थे पक्के घर थे कच्चे,
प्यारा बहुत हमारा आशियाना।
आता है याद वही वक्त पुराना।
कागज की किश्ती खूब बहानी,
बारिश का हो यूँ बरसता पानी,
काठ की गाड़ी का था चलाना।
डांट पड़ते पर वो आँसू बहाना।
चोरी चोरी से यूँ नजरें मिलाना,
आँखों ही आँखों से कह जाना,
चुपके से जा कर खत दे आना।
जवानी वाला वो प्यार सुहाना।
मनसीरत लौटा दो प्यारी बातें,
दुनिया से चोरी की मुलाकातें,
दुलारा बहुत था पंछी परवाना।
दिल में है जिंदा वो अफसाना।
याद है हमको हमारा जमाना।
आज भी हूँ मै उसका दीवाना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)
🙂🙏