याद है प्यार की कहानी भी
याद है प्यार की कहानी भी
दर्द की दास्तां पुरानी भी
ज़ीस्त में साथ-साथ रहते हैं
रंजोग़म और शादमानी भी
बेअदब है ग़लत सलीका है
साथ में और बदज़ुबानी भी
उम्र ढलती है रोज़ पल-पल में
मिट ही जाती है ये जवानी भी
दे गया अनगिनत मुझे यादें
छोड़कर वो गया निशानी भी
मिलने आना नहीं कहा मुझसे
मुझसे मिलने की उसने ठानी भी
जब मुक़द्दर कभी बदलता है
नौकरानी बनी है रानी भी
जब भी आते हो मुझसे मिलने तुम
शाम लगती है तब सुहानी भी
सबके कहने को उसने टाल दिया
बात ‘आनन्द’ की न मानी भी
– डॉ आनन्द किशोर