याद भी अब तुम्हारी रुलाती नहीं
चाँदनी आजकल छत पे आती नहीं
रात भी अब कभी मुस्कुराती नहीं
झूठ सुनना अगर चाहो तो लो सुनो
याद भी अब तुम्हारी रुलाती नहीं
गर मोहब्बत में न हारते हौसला
डोर चाहत की यूँ टूट जाती नहीं
जंग लड़ने का होगा हुनर आपमें
जिन्दगी वरना ऐसे सताती नहीं
राह हर पल बदलते जो ‘संजय’ यहाँ
मंजिलें उनके हिस्से में आती नहीं