याद पिता की
याद पिता की कभी न जाती
सदा साथ रह हिय हुलसाती
घर में रहूँ या रहूँ बाहर
उनकी सुस्मृति साथ निभाती
उनकी ही प्रेरणा निरन्तर
मुझसे काव्य-सृजन करवाती
सुख में दुख में सम रहने का
पाठ अनवरत मुझे पढ़ाती
वे ‘महेश’ को सीख दे गए
निर्भयता भीतर से आती
महेश चन्द्र त्रिपाठी