याद तुम्हारी आई है!
प्रिय गलियाँ तुम बिन सूनी हैं
किरणें कुछ सकुचाई हैं ।
मुँह ढाॅंपें बैठी है कोयल,
याद तुम्हारी आई है ।
पाजेब की रुनझुन रुनझुन
आंगन ने है सुनी नहीं
कल्पनाओं ने सपनों की
झिलमिल सी चादर बुनी नहीं
जुगनू संग में ले आई है
निशा ने अगन बढ़ाई है ।
लाल महावर सधे कदम की
करे प्रतीक्षा देहरी है ।
स्मित अधरों से रूठी है
हिचकी लिए दोपहरी है ।
संध्या भरे कदम से पहुँची
स्मृतियाँ संग लाई है ।
प्राण प्रिये को छोड़ के कैसे
दिवस तुम्हारे बीते हैं
गुंजित करते थे कुटिया जो
खग भी मुझसे रूठे हैं ।
चेहरा भीगा है शाखों का
तुलसी भी कुम्हलायी है ।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ