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19 Dec 2020 · 1 min read

याद क्यूॅं आती है

टूटे दिल पे मुस्कुराने क्यूॅं आती है।
उसकी याद मुझे सताने क्यूॅं आती है।

माना उसके साथ दिन नहीं गुजरेंगे,
फ़िर रात मुझे आज़माने क्यूॅं आती है।

मैं तो हवा से भी नाराज़ ही रहता हूॅं,
वो उसकी ख़ुशबू फ़ैलाने क्यूॅं आती है।

उससे ज़ुदा हुए तो ज़माना बीत गया,
उसकी याद अब भी जाने क्यूॅं आती है।

उसी को तो भुलाने के लिए पीता हूॅं,
वो मेरे साथ मयखाने क्यूॅं आती है।

संजीव सिंह ✍️
(स्वरचित एवं मौलिक)
नई दिल्ली

3 Likes · 2 Comments · 250 Views
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