याद किया नहिं कभी राम को नित माया ही जोड़ी
याद किया नहिं कभी राम को
नित माया ही जोड़ी।
कुंभकर्ण सा सोया दिन में,
नीद कभी नहिं छोड़ी।।
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जब से पैदा हुआ जमीं पर,
भूल गया उस रब को।
संस्कारों को त्याग दिया है,
अपनाया बेढब को।
उलझ गया सब ब़ेढंगों में,
राह भक्ति से मोड़ी।।
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लगा झूठ के प्रपंचों में,
आडंबर में लिप्त हुआ।
कृत्य नित्य सब व्यर्थ किए हैं
इसीलिए अभिसिप्त हुआ।।
भोग रहा फल कर्मों के ही
किस्मत अपनी फोड़ी।
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मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में,
टेक रहा है माथा।
इतर सोचता अन्तर्मन से,
यही है उसकी गाथा।
प्यार और विश्वास प्रेम की
हर मर्यादा तोड़ी।
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