याद करता है
समंदर से भी ज्यादा प्यार गहरा याद करता है
जमाना आज भी वो मेरा किस्सा याद करता है
टहलते पार्क में गुजरा महकती शाम का हर पल
तिरी आँखों के दरवाजे का कजरा याद करता है
बिताकर के जहाँ बचपन चले आए हो शहरों में
बड़े से गाँव का छोटा वो मजरा याद करता है
दिखाई दे रहे हैं हर तरफ अब सूखते रिश्ते
कभी नदियाँ बहा करती थी सहरा याद करता है
जमाने को शराफत का मुखौटा ही दिखा लेकिन
मिरी आवारगी को मेरा कमरा याद करता है
झुका करते है सर केवल मुरादें पूरी करने को
इबादत कब हुई थी आज सजदा याद करता है
खुदा की मतलबी दुनिया में बोलीं हिचकियाँ ‘संजय’
तुम्हें अब भी तुम्हारा कोई अपना याद करता है