याद आते हैं बचपन के दिन
याद आते हैं आज बचपन के दिन,
कितने मासूम थे लड़कपन के दिन।
लौटा दे अगर कोई उनको मुझको
गाऊंगा गुण उसके मै सदा रात दिन।।
बचपन में न था कोई फिकर फाका,
जहां मर्जी आई वहां बेफिक्र झांका।
भूलते नही वो दिन भूलकर भी आज,
ज़वानी ने बचपन पर डाला है डाका।।
फटी कच्छी में हर जगह घूमता था,
हरपल मस्ती में हर जगह झूमता था।
जब से ज़वानी की चादर ओढ़ी है मैने,
नौकरी के लिए इधर उधर हूं मैं घूमता।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम