याद अमानत बन गयी, लफ्ज़ हुए लाचार ।
याद अमानत बन गयी, लफ्ज़ हुए लाचार ।
ख्वाबों की महफिल हुई, अश्कों से गुलज़ार ।
उनके आने की नहीं, इस दिल को उम्मीद –
हर दस्तक पर क्यों लगे, शायद हो दिलदार ।
सुशील सरना / 28-3-24
याद अमानत बन गयी, लफ्ज़ हुए लाचार ।
ख्वाबों की महफिल हुई, अश्कों से गुलज़ार ।
उनके आने की नहीं, इस दिल को उम्मीद –
हर दस्तक पर क्यों लगे, शायद हो दिलदार ।
सुशील सरना / 28-3-24