यादो के आईने
यादो के आईने में तुझे सुबहो-शाम देखूँ,
कहकर तेरे तस्सवुर पे मैं भी कलाम देखूँ।
घर से निकलके रोज़ जाता हूँ मैं किधर,
पीछा अपना करके वो मंज़िल-ओ-मकाम देखूँ।
लबरेज़ हैं ये खातिर तेरे उफ़क-ए-सितम से,
और अहले-कालिब को छलनी सरे-शाम देखूँ।
तू नज़र तो आ ऐ जाँ, ये मेरे दिल की हैं फुगाँ,
तुझे देखने को जालिम तेरा दर-ओ-बाम देखूँ।
ये जो आराइशे-ग़म हैं, ये हैं जमाले-इश्क़ यारो,
तुम मेरी गिरिया देखो, मैं इश्के-अंजाम देखूँ।
दौरे-हाज़िर में ‘तनहा’, ये हैं जीने का सलीक़ा,
तुम अपना काम देखो, मैं अपना काम देखूँ।
तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’