यादों के झरोखे
डायरी के कुछ पल (यादों के झरोखे)
मुश्किल उन लम्हों को भूल जाना
बंद लिफाफे में तेरे पैगाम का आना
चिठ्ठी पर लिखा देख कर नाम अपना,
मेरे मन के गुल सा खिल खिलाना
तब डाकिये की घण्टी सुन दौडती
चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती
लेकिन अब घंटी की आवाज नही आती
दूरभाष तक सिमट गया है प्यार मोहब्बत
मोबाईल रेज के जैसे नखरें दिखलाती!!!
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा