यादों के झरोखे से
१२)
” यादों के झरोखे से ”
यादों के झरोखे में
जो बैठी एक किताब लेकर
पलटे पन्ने तो झट से
अतीत आया बहार लेकर
टूट गई सारी दीवारें
हवा खुशबू संग लहराने लगी
फूल खिलखिलाने लगे और
तितलियाँ भी देखो न
आस पास मेरे मंडराने लगी
इन्द्रधनुषी उनके रंगों में
जीवन मुस्कुराने लगा
सुनहरी स्वर्णिम यादों से
दिल को मेरे गुदगुदाने लगा
बंद कर ली आँखें मैंने
ताकि पलकों में क़ैद कर लूँ
इन प्यारे- प्यारे पलों को
लौट जाऊँ फिर उसी वक़्त में
लेकर अनगिनत यादों को
यादों के झरोखे से
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर