यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
कौन कौन , कब – कब
और किसने –
तो कुछ ने आँखों से ही
अनकही –
कुछ ने बोल के क्या – क्या कही
यादों के अथाह में , सालों तैरती रही
यादों की कुछ बूँदें कभी ,
तेज़ाब सी टपकी
कोमल मन की चमड़ी
जल जल काली हो गई
उम्र के सफर के
अलग अलग सराय में
कभी कड़ी धूप ने
तो कभी फूलती साँस ने
थका कर बिठा दिया,
कभी ठंडी हवा
कोमल बारिश के झोंको ने
सहला कर सुला दिया
और जब थक के कभी आँखे ,
गहराईओं में मूँद लीं
तो यादों के अथाह से ,
कुछ शहद सी
टपकती बूंदे
मन को शीतल कर गई
याद भी समुद्र मंथन है
यादों में विष है –
तो कहीं अमृत भी है छुपी हुई