यादों की बारात
नदी किनारे बैठे हैं कब से, यादों की बारात लिए।
मिलने आयेगी हमसे वह, बैठा हूँ यह आश लिए।
नदी की कलकल धारा भी, उसे ही हरपल बुलाती है।
कोयलियाँ की कूक में उसकी आवाज सुनाई देती है।
जब नहीं आती मिलने तो , दिल हो जाता है उदास।
मेरे संग संग न जाने क्यों ? सूरज भी होता है उदास।
मंद पवन के झोंके से उसके आने की आहट आती है।जब आती वह नदी के तीरे,मेरे दिल को चैन आता है।
जब से उससे नेह लगी, अब कुछ भी नहीं भाता है।
कैसा उसने जादू किया, अब कुछ भी नहीं सुहाता है।
करता हूँ इजहार कि मैं बेपनाह मोहब्बत करता हूँ।
रहे सलामत मेरी मोहब्बत, रब से दुआ मैं करता हूँ।