यादों की तितलियां
उड़ गई देख बनकर वो सब तितलियां
यादें जो जुगनू बन चमकती थी।
बस वही थी जो विराने में संग मेरे
हर घड़ी हर पल विचरती थी।
काश! होता कि मैं पकड़ पाती
तेरी चाहत की रंगीं तितलियों को।
वो तो निकलीं आवारा भंवरे सी,
छोड़ के उड़ गई सूखे फूलों को।
थी वो शब्द , मेरे बीते लम्हों के
जो उकेरे थे कभी मैंने पन्नों पे।
हर एक शब्द डूबा था मेरे आंसू में
खून के थे वो अश्क जो बहाए हमने।
नीलम शर्मा