यादों की अम़ानतें
कुछ मीठी, कुछ खट्टी, ज़ेहन में पाब़स्ता वो यादों की अम़ानतें।
कुछ लम्ह़े वो बचपन की मस्ती भरे ,वो उमंगे , वो श़राऱतें।
वो कुछ जवानी के पल , वो जोश़े जुनूँ , वो कुछ कर गुज़रने की ज़ुर्रतें।
दोस्ती में कुर्ब़ानी का वो जज्ब़ा , तो अज़ीज़ों की वो चंद मसलहतें।
वो कुछ गम़ग़ीन म़ाहौल , तो कभी खुश़ग़वार फ़िज़ा की मस़र्रतें।
कुछ नाक़ामियों की मजबूरियाँ , तो कभी कामय़ाबी की खुशियाँ।
कुछ अज़ीज़ो का साथ छूटने का गम , तो कुछ नए रिश्तों के बनने की खुशियाँ।
कुछ अपनो की इनाय़तें , तो कभी ग़ैरों की बऱगला देने की कोशिशें।
कुछ नई बनती दोस्तीयाँ , कुछ उभरती पुरानी रंजिश़ें ।
रफ़्ता रफ़्ता इन सब से गुजरता रहा ज़िंदगी का कारवां।
छोड़ हमसफ़र मंज़िल दर मंज़िल बढ़ता रहा छोड़कर कदमों के निशाँ।