यादें
तुम्हारी भयानक यादों कीं
छोटी बड़ी छिपकलियां
रेंगती रहती हैं
दिन रात
मेरे टूटे दिल की
खुरदरी दीवारों पर
कभी उल्टी कभी सीधी
छत से ज़मीन तक
चढ़ती और उतरती हैं
अपने तेज़ और नुकीले नाखूनों के सहारे
कस के पकड़े हुए
मेरी नब्ज़ की चादर
अपलक साधे हुए निशाना
मेरे सुख और चैन पर
छलांग लगा देती हैं
और निगल जाती हैं
पतँगों की तरह
तुम्हारी भयानक यादों की
छोटी बड़ी छिपकलियां
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”