“अहसास”
जब भी आता है ,
कोई हवा का झोंका,
छू लेता है ,
मेरे तन को,
और सिहरन ,
पैदा हो जाती है ।
ऐसा लगता है,
मानो तुम ,
यही, कही हो ,
मेरे आस-पास।
नहीं मानती ,
कोई बंदीसे,
नहीं बांध पाती ,
कोई जंजीरे।
यह अहसास हैं ,
पार करती ,
सरहदें ।
जब भी ,
चांद की चांदनी ,
नृत्य करती है ,
और रात के ,
सन्नाटो से ,
कभी चूड़ियों की ,
खन-खन ।
तो कभी ,
पायल की ,
छम-छम ।
की आवाज ,
आती है ।
ऐसा लगता है,
मानो तुम ,
यही, कहीं हो,
मेरे आस-पास।
नहीं कैद कर पाती ,
उसे कोई दीवारें ।
नही रोक पाती,
कोई मजहबे,
यह अहसास हैं ,
पार करती ,
सरहदे ।