यादें
तनहाई में तन्हा होता हूँ तो
अंगड़ाई और फिर लम्बी
जम्भाई के साथ अक्सर
वो याद आ जाती है
दिलो दिमाग पर.छा जाती है
जकड़ लेती है अपने आगोश मे
यकायक बन्द हो जाती हैं आँखे
पूर्णतः खो जाता हूँ अतीत में
चाँद चकोर सा सुन्दर मुख
देखते ही मन प्रफुल्लित हो जाता
हिरणी सी मतवाली चाल
मृगनयनी नशीले नयन
गठीला गदराया मखमली बदन
महसूस करता हूँ उनका साथ
हाथों में लिया हुआ उनका हाथ
वो मंद मंद मीठी मुस्कान
प्रथम स्पर्श कंपन सिरहन
काली घटाओं सी सघनी
गेसुओं की घनी छाँव
झुकी आँखों की हया शर्म
कुल की पगड़ी बचाने का धर्म
पल भर में बिछुड़ने का डर
कठिन डगर पर गिरने का डर
पीछे न मुड़ पाने का मलाल
मान मर्यादा का ख्याल
आँसुओं से भीगा आँचल
परस्पर बाहों में आलिंगन
नम आंखों से दी विदाई
उम्र भर की मिली जुदाई
बीती यादों का झरोखा
झकझोरता है आज भी
व्यथित दुखी करता है मन
…सुखविद्र सिंह मनसीरत