यादें
सुनहरी यादें
संग उनके बीते वो लम्हें बहुत रुलाते है।
उनकी बाहों के वो झूले मुझें मीठी नींद में सुलाते है।।।।।
उनका मुझसे हँस कर बात करना कैसे भूल जाऊ।
आज भी मेरे सपनों में वो अकेले चले आते है।
निकलती हूँ शामो शहर में घूमने को गली में उनकी।
वो कभी कभी मेरी राहों में टकरा जाते हैं।।।।
आहिस्ता आहिस्ता दिन गुज़रने लगें है उनके बगैर।
हम तन्हाई में छुप छुप अश्क़ बहाते है।।।।।
दिल में मेरे रह रह कर रोज दर्द की टिस उठती है।।
जाने वो मेरे बगर खुद को कैसे बहलाते है।।।।।।
रख लिया है उन्होंने हमें एक बन्द कमरे में कभी कभी देखने के लिये।
हम अपने अल्फाज़ो से उन्हें अपना दर्द सुनाते है।।
आज नही तो कल मुझे यक़ीन है वो मिलेंगे मुझसे जरूर।
हम यही सोच खुद को रोज समझाते है।।।।
आता नही चैन इस नादान दिल को कैसे समजाऊँ।
इसी लिए नींदों में उनके सपने पलकों पर हम सजाते है।।।
कब आयेंगे वो ये सोचते है दिन रात तन्हाई और रुसवाई में बैठकर।
कभी कभी उनके दीदार को उन्हें अपनी गली बुलाते हैं।।।।।
मग़र अब बदल गया उसका मिज़ाज ये मौसम बहार जैसा।।
लगता हैं सोनू को अब वो पहले जैसा नही चाहाते है।
रचनाकार
गायत्री सोनू जैन
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