“यादें”
“यादें”
बारिश में बूँदों की खनखन
अहसास तेरा दिलाती है।
घनघोर घटा जब छाती है
ज़ुल्फ़ों की याद दिलाती है।
हिचकी आती तन्हाई में
लगता है तू ने याद किया।
अनिमेष ताकता बादल को
तारों में तू छिप जाती है।
कलम उठाता जब लिखने को
नज़रें तुझ पर टिक जाती हैं।
रूप उकेरूँ अल्फ़ाज़ों में
ग़ज़ल बनी तू शरमाती है।
जी चाहे लब को छू लूँ मैं
प्यासी आँखें तरसाती हैं।
तुझको पाने की चाहत तो
दरिया में अगन लगाती है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी ।(मो.-9839664017)