यादें बचपन की
पैंसठ साल के रामलाल दादा ने घर से बाहर निकलते हुए अपने पड़ोसी दोस्त दयाशंकर को आवाज दी :
” चलो आज कन्चे खेलते है इसके बाद गिल्ली डंडा खेलेंगे। ”
दयाशंकर ने कहा :
” लेकिन भाई ये हैं कहां वर्षों हो गये इन्हें देखे हुऐ ।”
रामलाल ने एक पोटली हिलाते हुए बताया:
“यह है कन्चे मैंने इन सब चीजों को संभाल कर रखा है कम से कम आज के बच्चों को मालूम तो हो यह सब ।”
इसके बाद दोनों मस्ती से खेलने लगे और सोसाईटी के सब लोग आश्चर्य से इनके खेल को देखने लगे।