यह 🤦😥😭दुःखी संसार🌐🌏🌎🗺️
शायद! धरा पर , धरा गया कुलिश-कुशासन का भार|
संस्कारों से झरता नार ,सुचालक कुविचारों का तार।।
रोग निगले आदमी को, मिलकर जल – वायु का साथ|
कितना लम्बा हो गया है, काल का विकट यह हाथ||
तुझे क्या मतलब? ये खाऊँ, मेरा मन जो खाऊँ ।
पैसा मेरा, तन है मेरा, जैसी मर्जी वहीं रम जाऊं|।
निर्मम मन से मांसाहार, पर पीड़ा को दिया बिसार।
हाल* बीमारी से देखो जन-धन पर कैसी पड़ती मार?
आचार बिगड़ा, खान-पान का, अंध-आंधी अनुकरण वाली|
क्रमशः संक्रमित, अमित होकर, फैला रहे हैं बदहाली।।
परिग्रही*, परग्रही* , परंतप* भावों से अत्याचार-भरमार|
हम, हमारा, छोड़ा, छूटा सुखी – जीवन का सही विचार।।
प्रकृति, समय से बड़ा ठाने, घमंडी, मंदबुद्धि-*कासार।
इसी सोच में, शोक-भरा है,दुःखद समय का यह संसार||
संकेत शब्द:-
1* इस समय,2*इकट्ठा करने वाला, 3* दूसरों का हड़पने वाला, 4* दूसरों को सताने वाला,5* जलाशय ।।