यह हमारा अन्न दाता है।
बारिश को ताकती…
रहती है जानें कब से उसकी दो आँखें।।
प्रतिदिन ही…
प्रार्थना करती है ईश्वर से उसकी फैली दो बाहें।।
मेघ राजा कब दया दिखाओगे।।
कब उसकी आशा से आओगे।।
सूखी जाती हैं उसकी फसलें।
बस में रहा ना उसके अब क्या कुछ वह करले।।
कोई मदद को उसकी ना आता है।
ईश्वर तू भी क्यों ना उनकी प्रार्थना सुनता है।।
अब ना तरसाओ बरखा रानी,
जल्दी से उसकी फसलों की प्यास बुझाओ।।
खुशियां बनकर उसके जीवन की,
तनिक उसके हृदय को भी हँसाओ।।
धर्म कांड भी उसने कर वायें हैं।
कर्जा लेकर स्वयं को विपत्ति में फंसाये है।
अंकुर ही बस बीजो से निकले है।
पर वो जल की बूंद बूंद को तरसे है।
उन पर थोड़ी दया दिखाओ।
मेघ राज अब तुम आ जाओ।
पिछली बार भी तुम ना आये थे समय पर।
अभी भी महाजन का कर्जा है बीजों का उन पर।
यदि धान की पैदावार हुई ना अच्छी।
कैसे मिलेगी फिर उसको अपनी विपत्तियों से मुक्ति।
वह शून्य सा…
सारे नभ को प्रत्येक क्षण देखता रहता है।
देखने के अतिरिक्त…
वह कुछ भी ना कर सकता है।
प्रभु उसकी चिंता को अब और ना बढ़ाओ।
मेखराज से कह कर बारिश को करवाओ।
हे ईश्वर,
तुम ही मात्र उसकी अंतिम आशा हो।
कहीं मृत्यु का आलिंगन ना करले…
मत उत्पन्न कर देना ऐसी हृदय में निराशा को।।
बादलों को निहार-निहार कर वो जीवन को
जी रहा है।
यह हमारा अन्न दाता है…
जो प्रतिदिन ऐसे मर रहा है।
ताज मोहम्मद
लखनऊ