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14 Feb 2017 · 1 min read

यह मौसम की हलकी हलकी फुहार

यह मौसम की हलकी हलकी फुहार
होले होले ले आयी मुझे तेरे द्वार
मन में उठ पड़ी फिर से चहक उठी
नई कलिओं के खिलने की पुकार !!

मन विचलित था, न सूझ रहा था
कुछ करने का न मन उठा रहा था
जब से आयी तेरे आने की पुकार
मन बसंत की तरह खिल गया बार बार !!

आँचल में समेट कर रखने को जी चाहा
की बांध लूं अपने गठबंधन में फुहार
जब गर्म मौसम का होगा आगमन
तो रिम झिम कर लूं मन हो जायेगा साकार !!

तुम आना , और आके फिर न जाना
क्यों की जीवन के बस दिन रह गए हैं चार
मन की उमंग खिल जाती है, योवन की तरह
जैसे हठ्खेलियन करता है, मन मेरा विचार !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
301 Views
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