यह मौसम की हलकी हलकी फुहार
यह मौसम की हलकी हलकी फुहार
होले होले ले आयी मुझे तेरे द्वार
मन में उठ पड़ी फिर से चहक उठी
नई कलिओं के खिलने की पुकार !!
मन विचलित था, न सूझ रहा था
कुछ करने का न मन उठा रहा था
जब से आयी तेरे आने की पुकार
मन बसंत की तरह खिल गया बार बार !!
आँचल में समेट कर रखने को जी चाहा
की बांध लूं अपने गठबंधन में फुहार
जब गर्म मौसम का होगा आगमन
तो रिम झिम कर लूं मन हो जायेगा साकार !!
तुम आना , और आके फिर न जाना
क्यों की जीवन के बस दिन रह गए हैं चार
मन की उमंग खिल जाती है, योवन की तरह
जैसे हठ्खेलियन करता है, मन मेरा विचार !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ