यह मेरे भी कुछ ख़त मोह्हबत क़े नाम
यह मेरे भी कुछ ख़त मोह्हबत के नाम
ना उसका पता मालूम नाम है गुमनाम
यह मेरे भी कुछ ख़त…
सूखे गुलाब की पत्तियां याद दिलाती है
प्यार में जिंदगी कर दी मैंने उसके नाम
यह मेरे भी कुछ ख़त…
फ़ाख्ता बहुत उड़ाये तस्वीर दिखा मैंने
जवाब में नहीं आये उसके कोई पैग़ाम
यह मेरे भी कुछ ख़त…..
याद में उसकी जा बैठा जो मैखाने में
चेहरा याद दिलाये उसका हर इक ज़ाम
यह मेरे भी कुछ ख़त…
इक दिन हाँ इक दिन दिखी फ़िर मुझकों
मेरी ज़िंदगी की बन गई खुशनसीब शाम
यह मेरे भी कुछ खत…
इजहारे मोहब्ब्त का अंदाजा कुछ ऐसा था
फिसली जो वो लिया बाहोँ में मैनें उसे थाम
यह मेरे भी कुछ ख़त…
शर्म हया की मूरत से जो पूछ बैठा मैं उनसे
लज्जा कर मुस्करा बोले मुझसे मैं गुलफ़ाम
यह मेरे भी कुछ ख़त….
मोह्हबत परवान चढ़ गई हम दोनों के बीच
वो सौलह की जवानी में ही थे मेरे प्रभू राम
यह मेरे भी कुछ ख़त….
पर शायद मंजूरे ख़ुदा इश्क़ मेरा न जमाने को
आया आड़ ले धर्म के वो क़त्ल किया सरेआम
यह मेरे भी कुछ खत….