यह प्रकृति कुछ कहना चाहती है ।( विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष)
यह प्रकृति कुछ कहना चाहती है ,
अपने दिल का भेद खोलना चाहती है,
भेजा है उसने हवाओं द्वारा अपना संदेशा।
ज़रा सुनो तो !जो वह कहना चाहती है।
उसका अरमान ,उसकी चाहत है क्या ?
सिवा आदर के वो कुछ चाहती है क्या ?
बस थोड़ा सा प्यार ,थोड़ा सा ख्याल ,
इसके अतिरिक्त और कोई चाहत है क्या ?
यह चंचल नदियां इसका लहराता आँचल ,
है काले केश यह काली घटाओं सा बादल ,
हरे -भरे वृक्ष ,पेड़ -पौधे और वनस्पतियां ,
हरियाली की साड़ी में जचती है कमाल।
है ताज इसका यह हिमालय पर्वत ,
उसकी शक्ति-हिम्मत शेष सभी पर्वत ,
अक्षुण रहे यह तठस्थता व् मजबूती ,
क्योंकि इसके गौरव है यह सभी पर्वत।
यह रंगीन बदलते हुए मौसम ,
शीत ,वसंत ,ग्रीष्म औ सावन ,
हमारे जीवन की तरह परिवर्तन शील यह ,
और सुख-दुःख जैसे रात- दिन।
इस प्रकृति पर ही यदि निर्भरता है हमारी ,
सच मानो तो यही पालक व् माता है हमारी ,
हमारे अस्तित्व अपूर्ण है इसके बिना ,
यही जीवनदायिनी और मुक्तिदायिनी है हमारी।
हमें समझाना ही होगा ,अब तक जो ना समझ पाये ,
हम अपनी की माता की चाहत को क्यों न समझ पाये ,
उसने अब तक अपना सर्वस्व दिया ,मांगा कुछ नहीं ,
इसके एहसानों,उपकारों का मोल क्यों ना चूका पाये।
क्यों हो गए हम लालची ,कृतघ्न व् कठोर ,
क्यों मात्र दे रहे निज सुख -ऐश्वर्य पर ज़ोर ,
एक हमारा नहीं,उसकी और संतानो का भी है हक़ ,
ज़रा देखें तो अपना गिरेबान और करें कुछ गौर।
तो आओ मिलकर हम यह कसम उठायें ,
अपनी प्रकृति -माँ के निमित रस्में बनायें ,
करें प्रकृति की रक्षा व् उसकी संभाल ,
पर्यावरण / पशु -पक्षियों की देखभाल ,
ताकि वसुंधरा खुशहाली के नगमें गाए।