यह परिवर्तन हमें रास नहीं आ रहा …
जाने क्या बात है जो ,
भारतीय संगीत के वृक्ष से ,
सभी पुराने पत्ते बारी बारी से क्यों झर रहे है ?
यह आगाज तो है परिवर्तन का,
मगर यह परिवर्तन हमें रास नहीं आ रहे है ।
कर्ण प्रियता और अमरता जिसकी संस्कृति थी ,
अब पाश्चात्य करण से अपना वजूद खो रहे है ।
हमें इस सूखे और मुरझाए वृक्ष को देख ,
हो रहा है दुख ।
हम जो नित्य प्रति पुराने पत्तों के रूप में
अपने नगीनों को खो रहे हैं।