यह पब्लिक है सब जानती है ..
यह public और यह media वाले
होते हैं बिन पेंदी के लोटे ,
जीतगए तो फूलों के हार चढ़ाएं ,
बिठाएं अपनी पलकों पर ।
गर हार गए तो मारें आलोचनाओं
के डंडे मोटे-मोटे ,
और रखें कदमो तले या
जूते-चप्पलों की नोक पर ।
फिर तो भई ! किया-कराया ,
सारी मेहनत गयी पानी में,
गम के मारे , बेचारे नेताजी बूढ़े
से दिखें भरी जवानी में ।
सुनो नेता जी ! कहता है कविराए,
यूँ आंसुओं में दामन अपना मत भिगोइए ।
नेकी कीजिये और फिर डाल ,
दीजिये दरिया के गहरे पानी में।
क्योंकि ! भइये! एहसान मंदी तो गयी तेल लेने …..