यह पतन का दौर है । सामान्य सी बातें भी क्रांतिकारी लगती है ।
यह पतन का दौर है । सामान्य सी बातें भी क्रांतिकारी लगती है । घुस लेकर अधिकारी समय पर काम कर दे तो उसे हम बड़ा ईमानदार मान लेते है । ठीक उसी प्रकार जब एक इंटरव्यू में पत्रकार सौरभ द्विवेदी को कंगना रनौत कहती है है हमारी बात कोई सुनता नहीं कि हम 2014 में आजाद हुए थे तो द्विवेदी जी टोकते है कि हम तो 1947 में आजाद हुए थे । यहां द्विवेदी जी की बात पर हम खुश होते है और उनकी बात बहुत क्रांतिकारी लगती है जबकि हम आजाद ही 1947 में हुए थे । मौलिक पतन शायद इसी को कहते है ।