यह नगरी है (५)
यह नगरी है ,
नेताओं की , आकाओं की ।
बस-स्टेंड इनके पापा का ,
जिसे बनाया इनने दफ़्तर ।
लंबी ऊंची पहुंच बताकर ,
ख़ुद ही ख़ुद को कहते बेहतर ।
चौराहा इनके दादा का ,
जिस पर ये अनशन करते हैं ।
गलियों में ग़ुर्गे फैले हैं ,
जो इनका ही दम भरते हैं ।
भाषा इनकी शब्द किसी के,
व्याकरण इनका अपना है ।
संज्ञा से ये रोज़ खेलते ,
कारक आगे का सपना है ।
ये जनता के उद्घारक हैं ,
आपदाओं के ये कारक हैं ।
पढ़े , अधपढ़े और निठल्ले ,
इनकी सेना में शामिल हैं ।
बेमौसम जो बढ़े अचानक ,
अमरबेल की शाखाओं की ।
यह नगरी है ,
नेताओं की , आकाओं की ।