यह दोष किसका है‼यहाँ दोषी कौन नहीं❗
देश कि राजधानी,दिल्ली में,
तीन बच्चे भुख से मर गये,
तो खबर बन गयी।
दूर किसी गांव में अक्सर मर जाते हैं किसी न किसी अभाव के चलते,
और खबर नहीं बनती,
किन्तु इससे इन मासूमों कि मासूमियत कम नहीं हो जाती, वर्ना ऐसा भी कहीं हो सकता है, कि,
देश कि राजधानी में रह कर भी कोई,भूखा रह जाय,और यहां तो मौत हुई है।
यह कैसी ब्यवस्था है,जिसमें इतनी अब्यवस्था है,
कोई भूख से मर जाये,और पोस्टमार्टम से पुष्टि हो जाये,खाली पेट थे बच्चे, अन्न का दाना भी नसीब न हुआ जिनको,वह भूखे ही रह कर मर गये।
आम आदमी कि सरकार से लेकर,
एक सौ पच्चीस करोड के रहनुमा तक,
जुमलों कि बर्षात करते गये,और बच्चे भूखे मर गये, अब बयान बीर आए,अपने अलाप सुना गये।
एक दुसरे को दोषी बता गये,अपना पल्लू बचा गये
तो दोष सरकारों का नही् मां बाप का है,
आखिर पैदाइस तो उनकी ही है,
फिर भला दुसरा कैसे दोषी हो सकता है,
क्यों नही वह कमाता था,जो बाप कहलाता था,
क्या हुआ जो उसके कमाने का साधन लु्ट गया,
यहां तो बच्चीयों कि अस्मत लुट जाती है,
किसी कि गाढी कमाई लुट जाती है,
क्या फर्क पडता है,इससे,पीछे मुड कर देखने से कया फायदा,जो लुट गया वह वापस तो आने से रहा,फिर उसी के आसरे वह क्यों रहा,
कहीं पान कि दुकान कर लेता,या फिर पकोडे ही तल देता,यह भी तो रोजगार है जी,
देखा नही संसद तक में इस पर चर्चा हो गयी,
और यह श्रीमान अपने लुटे हुए रिक्से के भरोशे थे,
दोष तो तुम्हारा ही है जी,तुम्हे नही पता कि सरकार ने योजना चलायी है,आंगन बाडी है,
स्कुलों मे मध्यान भोजन है,बालिका समृद्धी स्कीम है,अन्त्तोदय ,व बी पी एल योजना है,
वहां क्यों नही गये, यह किसका दोष है,
भले ही तुम गये होंगे,किन्तु कहने को तो यह सब है ही ,सुना नही एक नेता जी बोले भी हैं,हम तो केन्द्र से तीस रुपये का चावल तीन रुपये में देते हैं,किन्तु यह नही बताये कि इसके कार्ड कैसे बनते हैं,जो चिन्हीत होंगे दो हजार दो के बी पी एल में,औरवहां कि जनगणना में,हों,यानि।। कि तभी वह पात्र होगें इसके,फिर जो रहता ही किराये पर हो,अपना घर भी नसीब नही जिनको,वह कहां लाभ ले पाते हैं,यह तो जुमले हैं जो सुनाये जाते हैं,
जिन्हे एक अदद छत नसीब न हो,
जो आश्रय पाये हों किसी और के साथ,
उन्हे भला कौन दिलायेगा यह सुविधा,
तो फिर जो इतने बदनसीब हों,उन्हे तो यह सब
उनके प्ररारब्ध केअनुसार यह सब भोगना है,
और यह क्रम थमने वाला नही,क्योकि हम भाग्य➖ वादी जो हैं,।
आज कितने गांव उजाड हो गये हैं,
शहरों में रहने कि जगह नही रही,
सब रोजी रोटी कि तलाश में,अच्छे भविष्य कि चाह में,गांव तो गांव मां बाप को भी छोड आये,
ना घर के रहे ना घाट के, त्रिसंकू बन कर रह गये।
तो फिर,सोचो,यह कसूर किसका है,यहां दोषी कौन नहीं,।