यह दुनिया चाहती थी
यह दुनिया चाहती थी
मैं तुम्हारी दी हुई
चिट्ठियों को रख दूँ
किसी अजायबघर में,
उसके बाद यह दुनिया
उस अजायबघर में जाएँ
और उन चिट्ठियों को पढ़कर
प्रेम का उपहास उड़ाएँ;
उनमें कुछ ऐसी प्रतिज्ञाएँ भी थी
जिनको तोड़कर तुम जा चुकी हो
मैं नही चाहता हूँ
प्रेम पर कोई आँच आयें,
दुनिया ने मुझे
कुछ ओर भी सलाह दी
किन्तु, मैंने माचिस की तीली निकाली
और सारी चिट्ठीयाँ जला दी।