यह तो कोई इंसाफ न हुआ …..
खता करे कोई और सजा किसी और को ,
यह तो कोई इंसाफ न हुआ ए परवरदिगार !
तेरे दरबार का दस्तूर कब से बदल गया ? ,
तू खामोश क्यों है बोल तो सही एक बार ।
गुनाह करे चंद कमजर्फ ,खुदगर्ज इंसान ,
सजा भुक्ते सारी कायनात क्यों हर बार ।
तेरी हसीन कुदरत को कर रहे जो बरबाद,
है तो असल में वही सजा के हकदार ।
यह जो खौफनाक बीमारी है सारे जहां में ,
तू जानता ही होगा कौन है जिम्मेदार ?
लाखों बच्चे यतीम हो गए देख तो जरा!
अब कौन उठायेगा इनकी परवरिश का भार ?
क्या इन मासूमों ने किया तेरा गुलशन तबाह ,
क्या अभागी बेवाएं,बेसहारा बुजुर्ग थे कसूरवार ?
जिन्होंने गुनाह किए उनका तो कुछ न बिगड़ा,
मगर बेकसूर आवाम पर हो रहे है बेवजह वार ।
इतनी तबाही देखकर भी इस तरह खामोश है तू ,
हम इंसान इंसाफ मांगने आए है तेरे दरबार ।
एक उम्मीद लेकर खुदा के पहलू में आए है ,
फैसला उसपर है”अनु” इंकार करेगा या इकरार।