यह तेरी ख़ोज है
नए जीवन की शुरुवात है
कुछ छूट गया कुछ बाकी
कुछ अपने तो,
कुछ पराये बने
यह तेरी ही ख़ोज है
मंजिल हरियाली है
पत्थरीले रास्ते है
शरीर लथपथ है
अग्नि का प्रकोप है
यह तेरी ही ख़ोज है
जो निर्माण किया
अबतक संहार किया
धीरे धीरे ही सही
जो कुछ हासिल किया
यह तेरी ही ख़ोज है…
प्रो डॉ दिनेश गुप्ता- आनंदश्री
विश्वरीकोर्ड पुरस्कृत कवि, मुम्बई