यह जीवन रंगमंच है
मौत ने ज़िन्दगी से कुछ यूँ कहा
ऐ ज़िंदगी एक बात बता
तू सूरज का उजाला है
खिलता हुआ प्रसून है
मैं काली अंधियारी रात
मेरे आगे बस शून्य है
फिर तू क्यों करती है जफा
जबकी मैं हमेशा निभाती हूँ वफा
तू छोड़ देती जीव को मझधार में
मैं साथ लेकर जाती शमशान में
ज़िंदगी बोली ऐ मौत बता
इस में मेरी भी क्या है खता
सुबह का सूरज रात की गोद में छुप जाता है
खिलता हुआ प्रसून मिट्टी में विलय हो जाता है
यह जीवन एक रंगमंच है
यहाँ हर कोई अपना किरदार निभाता है
जो कुछ भी यहाँ होता है
वो ऊपर बैठा नाटककार करवाता है
एक की साँस खत्म होती है
तो दूजा नवजीवन पाता है
हर प्रभात में नया सूरज
और नया प्रसून आता है।
क्यों करता है जीव साँसों से प्रीति?
जबकि नहीं चलती यहाँ किसी की राजनीति
न ज़िंदगी हारी न मौत जीती
जीवन – मरण, हार – जीत सब कुदरत की है रीति।
-रागिनी गर्ग