यह चिड़ियाँ अब क्या करेगी
आँधी आई आज जोर से
टूट गई कितनी डाली ।
सड़के गलियाँ चारों तरफ
बिखरी थी सिर्फ डाली ही डाली।
साथ में कितने चिड़ियों का
घोंसला टूट गया है आज।
कितने अंडे टूट गये,
कितनो चिड़ियों का ले गया प्राण।
बची हुई चिड़ियाँ बेचारी
सोच रही है लगाकर ध्यान।
रात कहाँ अब वह गुजारेगी
अब नही रहा उसका मकान।
दर्द कितना दे गया उसे आँधी,
कैसे करे उस दर्द का बयान।
आँखों में आँसु भरकर वह
ढुँढ रही है अपना मकान।
करके विलाप वह अपने
अंडे और बच्चे को,
इधर-उधर ढुँढ रही है।
आँधी तो चली गई
पर उसके जीवन मे
जो आँधी छोड़ गई है
अब वह बेचारी कैसे
उससे बाहर निकल पाएगी।
कैसे वह अपना यह घाव
भर पाएगी।
~अनामिका